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आम चुनाव में कांग्रेस की ऎतिहासिक हार हुई है। पूरी पार्टी फिलहाल सन्न है और कुछ समझ ही नहीं पा रही कि ये सब कैसे हुआ और आने वाले समय में पार्टी को फिर कैसे सुदृढ किया जाए। वैसे तो किसी भी पार्टी के अच्छे व बुरे दिन आते-जाते रहते हैं और कांग्रेस सरीखी सवा सौ साल पुरानी पार्टी के लिए फिर ताकत पाना कठिन नहीं है लेकिन इसके लिए पार्टी को गंभीर मंथन करना होगा। मंथन का ये काम अब तक शुरू हो जाना चाहिए था लेकिन अभी तो पार्टी नेता हार का ठीकरा एक-दूसरे पर फोडने में ही अपनी ऊर्जा लगा रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफे देने की पेशकश कर मानो एक औपचारिकता निभाई जिसके जवाब में पूरी पार्टी ने ये कहने में कसर नहीं छोडी कि सोनिया-राहुल के बिना कांग्रेस कैसे चलेगी। तो सोनिया-राहुल के इस्तीफों पर चर्चा ही बंद हो गई। उसके बाद कांग्रेस नेताओं, खासकर मिलिंद देवडा ने राहुल गांधी के युवा सलाहकारों को घेरा, उन्हें अनुभवहीन बताया तो राहुल टीम ने भी पलटवार कर डाला कि मिलिंद खुद भी तो टीम राहुल के सदस्य थे। ऎसे में लगता है कि कांग्रेस अपनी हार की ईमानदारी से समीक्षा तो शायद ही कर पाए क्योंकि असल में हार के लिए पूरी कांग्रेस ही दोषी रही है। कांग्रेस का हर नेता पूरे चुनाव के दौरान सोनिया-राहुल व कुछ नेता प्रियंका के करिश्मे के बूते नैया पार लगने की मानकर चल रहे थे। ये सही भी है, कांग्रेस को हर चुनाव में गांधी परिवार ही जिताता आया है। कांग्रेस में अनेक अनुभवी, कुशाग्र नेता हैं लेकिन उनका सही उपयोग नहीं हो पाया। सारे कांग्रेसी गांधी परिवार की ओर तकते रहते हैं। इस कारण कांग्रेस नेता व कार्यकर्ता जमीनी हकीकत से दूर हो चुके हैं। यहां तक कि जनता से संवाद भी छोड चुके हैं। ऎसे में कांग्रेस को फिर से ताकत देना बहुत ही दुरूह कार्य होगा। कांग्रेस के सामने दूसरी दुविधा संसद में उसके भावी प्रदर्शन को लेकर है। लोकसभा में कांग्रेस की सदस्य संख्या महज 44 रह गई है। इस समय संसद में कांग्रेस ही राष्ट्रीय पार्टी है, शेष सभी क्षेत्रीय दल हैं जिनका सोच अपने राज्यों के हितों तक ही सीमित रहता आया है। ऎसे में 44 सांसदों की कांग्रेस को संसद में एक सशक्त भले ही न सही, समझदार विपक्ष की भूमिका निभाने को तैयार रहना है। ऎसा करके ही कांग्रेस संसदीय लोकतंत्र में अपनी प्रासंगिकता को बनाए रख सकती है व राज्यों में पार्टी के पुनर्जीवन के प्रयास कर सकती है। कांग्रेस को जनाधार रहित अपने राज्यसभा नेताओं पर निर्भरता भी घटानी होगी, जमीन से जुडे कार्यकर्ताओं व नेताओं को प्रोत्साहित करना होगा।
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