मुंबई । फिल्म ‘ठाकरे’ में बाल ठाकरे का किरदार निभा रहे राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी का कहना है कि जब महाराष्ट्र बुरे दौर से गुजर रहा था तो उस वक्त दिवंगत शिवसेना सुप्रीमो का गुस्सा और अक्खड़पन जायज था।
ठाकरे के किरदार के बार में अपनी समझ को जाहिर करते हुए नवाजुद्दीन ने यहां आईएएनएस को बताया, ‘‘मुझे लगता है उस वक्त के दौरान जिन हालात से समाज गुजर रहा था उसे देखते हुए उनका गुस्सा और अक्खड़पन जायज था। महाराष्ट्र में एक वक्त ऐसा था, जब सभी मिलें बंद हो गई थीं और युवाओं को अचानक बेरोजगारी का सामना करना पड़ा था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सैकड़ों की तादाद में मिल मजदूर बेरोजगार हो गए थे। वे कोई और काम भी नहीं जानते थे...उन्होंने कई वर्षों तक लगन के साथ काम किया था और अचानक एक रात में सभी मिलें बंद हो गईं और गरीब, मजदूर वर्ग मराठी लोग सडक़ों पर आ गए। वे बेगुनाह थे, जिन्हें जूझना पड़ा...नौकरियां पैदा करना सरकार की जिम्मेदारी थी और ऐसा नहीं हुआ था।’’
नवाजुद्दीन ने कहा, ‘‘यह वहीं वक्त था, जब दूसरे समुदाय समृद्ध होने लगे थे...इसलिए ठाकरे ने इन ‘मराठी मानुष’ को गरिमापूर्ण जीवन जीने की एक दिशा देने के लिए पहल की शुरुआत की। इस वजह से उन्हें लोगों का समर्थन और सम्मान हासिल हुआ।’’
अभिजीत पंसे द्वारा निर्देशित व संजय राउत द्वारा लिखित फिल्म ‘ठाकरे’ में अमृता राव और सुधीर मिश्रा जैसे सितारे मुख्य भूमिका में हैं।
20 वर्षों की लंबी अवधि तक संघर्ष करने के बाद नवाजुद्दीन ने भारतीय फिल्म जगत में अपनी एक लकीर खींची है। उन्होंने ‘ब्लैक फ्राइडे’, ‘देख इंडियन सर्कस’, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘द लंचबॉक्स’, ‘बदलापुर’, ‘बजरंगी भाईजान’, ‘रमन राघव 2.0’, ‘रईस’ और ‘मंटो’ जैसी फिल्मों में काम किया है।
अपने करियर की शुरुआत में एक साधारण आदमी और रंग की वजह से नवाजुद्दीन को कई फिल्म निर्मातओं ने फिल्में देने से इनकार कर दिया था लेकिन अब न केवल दर्शक बल्कि फिल्म जगत के लोग उनकी तारीफ करते नहीं थकते हैं। इससे कई संघर्ष कर रहे अभिनेताओं को फिल्मी चकाचौंध में जगह बनाने की उम्मीद जाग गई है।
क्या आप ठाकरे और खुद में एक सामान बिंदु पाते हैं क्योंकि आप दोनों ही उम्मीद की किरण दिखाई देते हैं चाहे बात मराठी लोगों की हो या संघर्ष कर रहे अभिनेताओं की।
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