महेंद्रगढ़। महेंद्रगढ़ के दोहान नदी में स्थित मोदाश्रम में शिव मन्दिर क्षेत्र में धार्मिक आस्था का प्रतीक है। लोग सुबह-शाम यहां आकर बाबा चन्द्रमोली की पूजा अर्चना करते हैं। लोगों का कहना है कि दूर-दूरसे यहां मेले के अवसर पर लोग भगवान के दर्शन के लिए आते हैं। जो लोग यहां सच्चे मनसे आकर पूजा अर्चना करते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। वैसे तो यहां काफी संख्या मेंश्रद्धालु बाबा चन्द्रमोली को जल चढ़ाने आते हैं लेकिन शिवरात्रिके दिन तो इसका नजारा अलग ही होता है। शिवरात्रि के दिन शहर व आस-पास गांवों की हजारों कीसंख्या में लड़कियां व औरतें दोनों समय बाबा भोले शंकर के शिवलिंग पर जल चढ़ाकरपूजा अर्चना करती हैं। इसके अतिरिक्त महिलाएं भजन कीर्तन भी करती हैं।
मेला आयोजक महेश जोशी ने बताया कि उन्होंने कहा कि भगवान यहां स्वयं प्रकट हुए थे।हमारा यह 227 व शिवरात्रि मेला है। शिवरात्रि का अपना एक विशेष महत्व होता है।उन्होंने बताया कि श्रावण मास की शिवरात्रि पर डाक कावड़ लेकर, खड़ी कावड़ लेकर बैठी कावड़ लेकर अनेक श्रद्धालु मंदिर में आकर गंगाजल भगवान भोलेनाथ के चरणों मेंअर्पित करते हैं। उन्होंने बताया कि जो भी सच्ची श्रद्धा से भगवान भोलेनाथ के इस मंदिर में आकर अपनी प्रार्थना करता है उसकी भगवान मनोकामना आवश्यक पूर्ण करते हैं।शिवरात्रि पर मंदिर परिसर मे भण्डारे का आयोजन भी किया जाता है। उन्होने कहा कि मोदाश्रम मन्दिर की स्थापना लगभग 104 वर्ष पूर्व हुई थी। इस मन्दिर कीस्थापना से पूर्व की एक घटना है कि गुलाब राय लोहिया नामक व्यक्ति उस समयबुचयावाली मन्दिर में सुबह शाम जाते थे और आते-जाते कुछ क्षण के लिए दोहान नदी के पास पीपल के पेड़के नीचे विश्राम के लिए बैठ जाते थे। एक दिन गुलाब राय को स्वप्न में भगवान शिव कादृष्टांत हुआ। स्वप्र में उन्हें लगा जिस पीपल के पेड़ के नीचे वो विश्राम करते थेवहां एक आवाज आई कि मुझे इस मिट्टी नीचे से निकाल ले। तब गुलाब राय ने अपनी इसघटना को बड़े बुजुर्गों और विद्वानों को बताई। विद्वानों और बुजुर्गो के कहने परउन्होंने वहां पर खुदाई करवाई और वहां पर एक लगभग चार-पंाच फीट की एक मंढी निकली।इसके बाद सभी गुलाब राय ने वहां पर दोनों समय जल चढ़ाना व पूजा अर्चना शुरु करदिया। गुलाब राय के कोई लड़का नहीं था। उनका वंश रुका हुआ था उनके पौते बजरंग लाललोहिया ने बताया कि उनके दादा गुलाब राय खुद दत्तक पुत्र थे। उन्होंने बताया किउनको एक दिन फिर भोले शंकर स्वप्र में दिखाई दिए और कहा कि 'मैं तूझे एक बेटा देताहूँ इसका नाम भोला रखना। ठीक एक वर्ष बाद उनको पुत्र की प्राप्ति हुई और उनका नाम भोला रखा। इसी खुशी में गुलाब राय ने अपने खर्चे पर यहां मोदाश्रम के बाहर मे लालगाया। इसके धीरे-धीरे चन्दे और दान से चैत्र और श्रावण माहस में मेला लगाया जानेलगा। इसी चन्दे से आज यहां एक विशाल मन्दिर का रूप ले लिया।
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