मुंबई। जैसे ही सिखों के नववर्ष और वसंत की फसल के त्योहार बैसाखी का आगमन होता है, अभिनेता अर्जुन कपूर इसके महत्व पर अपने विचार साझा करते हैं। अपनी बचपन की यादों, व्यक्तिगत मूल्यों और बदलती परंपराओं से प्रेरित होकर, वह इस त्योहार के साथ अपने जुड़ाव को व्यक्त करते हैं। उनका मानना है कि भले ही आज त्योहारों का स्वरूप बदल गया है, लेकिन परिवार, भोजन और श्रद्धा से जुड़ा उनका भावनात्मक संबंध अभी भी उतना ही गहरा है।
अर्जुन की शुरुआती बैसाखी की यादें शहरी परिवेश और उनके पंजाबी मूल दोनों से प्रभावित हैं। वे बताते हैं, "मेरे नाना-नानी अंबाला से थे और मेरे दादा-दादी भी पंजाबी थे।" उनके परिवार में, कई अन्य परिवारों की तरह, त्योहारों का मतलब स्वादिष्ट भोजन होता था। "वो हर त्योहार खाने के साथ मनाते थे," वे याद करते हैं। घर पर त्योहार का मुख्य आकर्षण सामूहिक भोजन और गुरुद्वारा जाना होता था। "तो घर पर जो खाना बनता था, वो उस त्योहार का हिस्सा होता था, बैसाखी भी अलग नहीं थी।"
उनकी यादें जीवंत संवेदनाओं से भरी हैं।
"मुझे याद है कि मैं बहुत छोटा था, पर गुरुद्वारे जाने की धुंधली झलकें याद हैं। और वहाँ लंगर लगता था, तो हलवा खाने में बहुत मजा आता था। हलवा-पूरी मिलती थी," वे मुस्कुराते हुए याद करते हैं। ये दो चीजें - गुरुद्वारा और भोजन - उनकी बैसाखी की यादों का सार हैं। "जो हलवा होता था, उसका घी इतना होता था कि पूरी प्लेट चमकती थी। मुझे वो बहुत अच्छे से याद है।" गुरुद्वारे से उनका यह जुड़ाव आज भी कायम है। "मुझे आज भी गुरुद्वारे जाने में बहुत सुकून मिलता है," वे कहते हैं।
अर्जुन मानते हैं कि आज के दौर में त्योहारों का स्वरूप अधिक सरल हो गया है - अब यह भव्य परंपराओं की बजाय भावना को समझने और सम्मान देने की बात है। वे कहते हैं, "हमें इस समझ के साथ त्योहार मनाने चाहिए कि वह किसी समुदाय के लिए पावन दिन है। आज बैसाखी सिखों के लिए है, कल गणपति मराठियों के लिए होगा, या दुर्गा पूजा बंगालियों के लिए।"
उन्हें लगता है कि भारत की खूबसूरती इसकी समावेशिता में है। "आज एक छुट्टी है जिसमें आप शामिल हो सकते हैं। अगली बार किसी और समुदाय की छुट्टी है, उसमें भी आप शामिल हो सकते हैं - और यही बात मुझे अपने देश के बारे में सबसे ज़्यादा पसंद है। जरूरी नहीं कि आप उसे अपने घर में मनाएं या उसकी हर परंपरा निभाएं। वह आपके आसपास मनाई जा रही होती है।"
इसी भावना को फिल्म इंडस्ट्री पर लागू करते हुए अर्जुन एक इच्छा ज़ाहिर करते हैं। "काश हमारे प्रोफेशन में भी साल में एक दिन ऐसा होता, जब हम अपने प्रयासों का बिना किसी तनाव या एजेंडे के जश्न मना सकते। जब फिल्म चल जाती है, तो हम कहते हैं कि बैसाखी की तरह हमने भी मेहनत का फल पाया। लेकिन जब चीज़ें नहीं चलतीं, तो हम उससे सीखते हैं और आगे बढ़ जाते हैं।"
वह बैसाखी के सांस्कृतिक और कृषि महत्व पर भी बात करते हैं। "हिंदुस्तान किसानों का देश है। मेरे लिए, किसान ही हमारे देश की असली पहचान हैं। हमने हमेशा इस बात का उत्सव मनाया है कि हम अन्न उगाते हैं, और बैसाखी वो समय है जब फसल काटी जाती है।"
वह किसानों की मेहनत को नमन करते हैं जो महीनों की कठिन मेहनत और प्राकृतिक चुनौतियों से जूझते हैं। "यह त्योहार दिखाता है कि मेहनत का फल मिलता है। यह नए आरंभ, विजय और पूरे देश को भोजन देने की क्षमता का प्रतीक है।"
त्योहारों के बदलते स्वरूप पर बात करते हुए वे उस पीढ़ी की बात याद करते हैं, जो अक्सर कहती थी: हमारे ज़माने में ऐसा नहीं होता था। वे कहते हैं, "जब हम बड़े हो रहे थे, तब हमारे माता-पिता कहते थे कि त्योहार पहले जैसे नहीं मनाए जाते, और अब हम खुद उसी दौर में पहुंच गए हैं।"
वे मानते हैं कि बदलाव तो ज़रूरी है, तकनीक और जीवनशैली ने त्योहारों के तौर-तरीकों को बदला है। "हर किसी के पास हर त्योहार को मनाने की क्षमता या समय नहीं होता... लेकिन जब तक आप उसका सम्मान करते हैं, उसकी सच्ची भावना को समझते हैं - आप त्योहार न भी मनाएं, लेकिन उसकी इज्जत करें - तो वो भी एक बड़ा सम्मान है।"
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