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हर किसी की जेब और जुबान पर होगा नवयुग का संविधान
-गायत्री परिवार 13 अप्रेल से शुरू करेगा अभियान
जयपुर। अखिल विश्व गायत्री परिवार की ओर से आज के दौर में व्यक्ति के चिंतन की दिशा-धारा को बदलने के लिए नव युग का संविधान पढ़ाया जाएगा। गायत्री परिवार के संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने इसका लेखन किया था। इसे अब हर व्यक्ति तक पहुंचाने की योजना बनाई जा रही है। इसे फोल्डर में तैयार कराया गया है। तेरह अप्रेल को गोविंद देवजी मंदिर में होने वाले नौ कुंडीय गायत्री महायज्ञ में इस अभियान का श्रीगणेश किया जाएगा। पिछले दिनों गायत्री परिवार के युवा मनीषी और देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पंड्या ने 18 सत्संकल्पों को हर व्यक्ति तक पहुंचाने का आह्वान किया था। लोगों से आग्रह किया जाएगा कि प्रत्येक व्यक्ति को दैनिक धार्मिक कृत्य की तरह इसे नित्य प्रात:काल पढऩा चाहिए और सामूहिक शुभ अवसरों पर एक व्यक्ति उच्चारण करें और शेष लोगों को उसे दुहराने की शैली से पढ़ा जाना चाहिए।
अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार में राजस्थान के पूर्व जोन प्रभारी जयसिंह यादव ने बताया कि गायत्री परिवार अपने जिस लक्ष्य को लेकर सात आंदोलनों को दुनियाभर में चला रहा है उसका बीज सत्संकल्प है। उसी आधार पर सारी विचारणा, योजना, गतिविधियां एवं कार्यक्रम संचालित होते हैं। 21 वीं सदी का संविधान घोषणा- पत्र भी कहा जा सकता है। संकल्प की शक्ति अपार है। यह विशाल ब्रह्मांड परमात्मा के एक छोटे संकल्प का ही प्रतिफल है। परमात्मा में इच्छा उठी ‘एकोऽहं बहुस्याम’ मैं अकेला हूं- बहुत हो जाऊं, उस संकल्प के फलस्वरूप तीन गुण, पंचतत्त्व उपजे और सारा संसार बनकर तैयार हो गया। मनुष्य के संकल्प द्वारा इस ऊबड़- खाबड़ दुनियां को ऐसा सुव्यवस्थित रूप मिला है। यदि ऐसी आकांक्षा न जगी होती, आवश्यकता अनुभव न होती तो कदाचित् मानव प्राणी भी अन्य वन्य पशुओं की भांति अपनी मौत के दिन पूरे कर रहा होता। इच्छा जब बुद्धि द्वारा परिष्कृत होकर दृढ़ निश्चय का रूप धारण कर लेती है, तब वह संकल्प कहलाती है। मन का केन्द्रीकरण जब किसी संकल्प पर हो जाता है, तो उसकी पूर्ति में विशेष कठिनाई नहीं रहती। मन की सामथ्र्य अपार है, तो सफलता के उपकरण अनायास ही जुटते चले जाते हैं। बुरे संकल्पों की पूर्ति के लिए भी जब साधन बन जाते हैं, तो सत्संकल्पों के बारे में तो कहना ही क्या है? धर्म और संस्कृति को जो विशाल भवन मानव जाति के सिर पर छत्रछाया की तरह मौजूद है, उसका कारण ऋषियों का सत्संकल्प ही है।
विश्व की सबसे प्रचंड शक्तिहै संकल्प:
शांतिकुंज में गायत्री परिवार राजस्थान के समन्वयक गौरी शंकर सैनी ने बताय कि संकल्प इस विश्व की सबसे प्रचंड शक्ति है। विज्ञान के शोध द्वारा अगणित प्राकृतिक शक्तियों पर विजय प्राप्त करके वशवर्ती बना लेने का श्रेय मानव की संकल्प शक्ति को ही है। शिक्षा, चिकित्सा, शिल्प, उद्योग, साहित्य, कला, संगीत आदि विविध दिशाओं में जो प्रगति हुई आज दिखाई पड़ती है, उसके मूल में मानव का संकल्प ही सन्निहित है, इसे प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष कह सकते हैं। आकांक्षा को मूर्त रूप देने के लिए जब मनुष्य किसी दिशा विशेष में अग्रसर होने के लिए दृढ़ निश्चय कर लेता है तो उसकी सफलता में संदेह नहीं रह जाता।
आज प्रत्येक विचारशील व्यक्ति यह अनुभव करता है कि मानवीय चेतना में वे दुर्गुण पर्याप्त मात्रा में बढ़ चले हैं, जिनके कारण अशान्ति और अव्यवस्था छाई रहती है। इस स्थिति में परिवर्तन की आवश्यकता अनिवार्य रूप से प्रतीत होती है, पर यह कार्य केवल आकांक्षा मात्र से पूर्ण न हो सकेगा, इसके लिए एक सुनिश्चित दिशा निर्धारित करनी होगी और उसके लिए सक्रिय रूप से संगठित कदम बढ़ाने होंगे। इसके बिना हमारी चाहना एक कल्पना मात्र बनी रहेगी। युग निर्माण सत्संकल्प उसी दिशा में एक सुनिश्चित कदम है।
सरल शब्दों में समाहित है परम्पराएं:
इस घोषणापत्र में सभी भावनाएं धर्म और शास्त्र की आदर्श परंपरा के अनुरूप एक व्यवस्थित ढंग से सरल भाषा में संक्षिप्त शब्दों में रख दी गई। सभी इस पर चिंतन करें तथा यह निश्चय करें कि हमें अपना जीवन इसी ढांचे में ढालना है। दूसरों को उपदेश करने की अपेक्षा इस संकल्प पत्र में आत्म- निर्माण पर सारा ध्यान केंद्रित किया गया है। दूसरों को कुछ करने के लिए कहने का सबसे प्रभावशाली तरीका एक ही है कि हम वैसा करने लगें। अपना निर्माण ही युग निर्माण का अत्यंत महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है। बूंद- बूंद जल के मिलने से ही समुद्र बना है। एक- एक अच्छा मनुष्य मिलकर ही अच्छा समाज बनेगा। व्यक्ति निर्माण का व्यापक स्वरूप ही युग निर्माण के रूप में परिलक्षित होगा।
आज की गीता के ये है अठारह अध्याय:
- हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर उसके अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे।
- शरीर को भगवान का मंदिर समझकर आत्म- संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।
- मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाए रखने के लिए स्वाध्याय एवं सत्संग की व्यवस्था रख रहेंगे।
- इंद्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम और विचार संयम का सतत अभ्यास करेंगे।
- अपने आपको समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे और सबके हित में अपना हित समझेंगे।
- मर्यादाओं को पालेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, नागरिक कर्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ बने रहेंगे।
- समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।
- चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं सज्जनता का वातावरण उत्पन्न करेंगे।
- अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता को शिरोधार्य करेंगे।
- मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी उसकी सफलताओं, योग्यताओं एवं विभूतियों को नहीं, उसके सद्विचारों और सत्कर्मों को मानेंगे।
- दूसरों के साथ वह व्यवहार न करेंगे, जो हमें अपने लिए पसंद नहीं।
- नर- नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखेंगे।
- संसार में सत्प्रवृत्तियों के पुण्य प्रसार के लिए अपने समय, प्रभाव, ज्ञान, पुरुषार्थ एवं धन का एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे।
- परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्त्व देंगे।
- सज्जनों को संगठित करने, अनीति से लोहा लेने और नव- सृजन की गतिविधियों में पूरी रुचि लेंगे।
- राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे।
- मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएंगे, तो युग अवश्य बदलेगा।
- ‘हम बदलेंगे- युग बदलेगा’’, ‘हम सुधरेंगे- युग सुधरेगा’’ इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।
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