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मैसर्स एल एसोसिएट फर्म के प्रति नोडल अधिकारी का पक्षपात उजागर, कल है टेंडर की अंतिम तिथि जयपुर। जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) पिछले कुछ समय से भ्रष्टाचार विकास प्राधिकरण बना हुआ है। हाल ही जोन-9 में एंटी करप्शन ब्यूरो की कार्रवाई में भ्रष्टाचारियों की गैंग पकड़े जाने के बावजूद यहां के अफसरों पर कोई असर नहीं हुआ है। बिना पैसे किसी जेडीए में कोई काम नहीं हो रहा है। जेडीए सूत्रों की मानें तो यहां के सभी अफसर सिर्फ बिल्डर्स और प्रॉपर्टी डीलरों के एजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं। ताजा मामला जयपुर के मास्टर प्लान का है। पक्षपात और भ्रष्टाचार के चौंकाने वाले इस मामले में जयपुर विकास प्राधिकरण ने अन्य सभी प्रतिस्पर्धी फर्मों को दरकिनार करते हुए चहेती ठेकेदार फर्म एल एसोसिएट की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मास्टर प्लान निविदा दस्तावेजों को तैयार किया है। पहली कॉल में मूल निविदा को 10 करोड़ रुपए की परियोजना लागत पर निर्धारित किया गया था। इसमें लागत के संबंध में किसी भी बिडर ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी। इसकी पहली कॉल में एल एसोसिएट ने 30 करोड़ रुपए की बोली लगाई थी। लेकिन कुछ त्रुटियों के कारण यह टेंडर रद्द कर दिया गया। इसके बाद जेडीए के नोडल अधिकारी ने एल एसोसिएट फर्म के अनुरोध पर बेहद संदिग्ध कदम उठाते हुए लागत को 10 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 15 करोड़ रुपए कर दिया। जबकी पहली कॉल वाली प्री बिड मीटिंग में किसी ने भी टेंडर कार्य के लिए शुल्क बढ़ाने का कोई अनुरोध ही नहीं किया था। सवाल यह है कि जब किसी की डिमांड ही नहीं थी तो नोडल और अन्य अफसरों ने काम की लागत दर 5 करोड़ रुपए आखिर किसलिए बढ़ाई। क्या अफसर इसमें ज्यादा कमीशन खाना चाहते हैं। यह एसीबी से जांच का विषय है। सूत्रों की मानें तो पहली कॉल की प्री-बिड मीटिंग के दौरान जयपुर विकास प्राधिकरण ने अन्य प्रतिस्पर्धी फर्मों के हर अनुरोध को नजर अंदाज कर दिया। लेकिन, एल एसोसिएट्स फर्म के सभी अनुरोधों को स्वीकार कर लिया। मामले को बदतर बनाने के लिए टेंडर के नोडल अधिकारी वी शर्मा, जिन्होंने खुले तौर पर एल एसोसिएट फर्म और उसके सहयोगियों के प्रति अपने पूर्वाग्रह की घोषणा की थी। बता दें कि कुछ समय पहले मुख्य सचिव सुधांश पंत द्वारा उन्हें हटाने का आदेश दिया गया था। लेकिन, वे अभी तक अपने पद पर बने हुए हैं। इससे न केवल जेडीए की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं, बल्कि सरकार की करप्शन को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति भी संदेह के घेरे में है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह धांधली वाली निविदा प्रक्रिया निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को दरकिनार करते हुए विशेष रूप से एल एसोसिएट्स फर्म को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई है। यह काम भी तब हो रहा है जब हाल ही में जयपुर विकास प्राधिकरण के सात कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के मामले में रंगे हाथों पकड़ा गया था। भ्रष्टाचार विरोधी निकायों और निरीक्षण समितियों सहित संबंधित अधिकारियों के लिए यह जरूरी है कि वे निविदा प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करें और सरकारी एजेंसियों में जनता का विश्वास बहाल करने के लिए भ्रष्टाचार और पक्षपात के इन घोर कृत्यों की गहन जांच शुरू करें। इधर, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के महानिदेशक डॉ. रवि मेहरड़ा ने जेडीए में कार्रवाई के तुरंत बाद बयान दिया था कि एसीबी के पास कई अधिकारियों और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के कुछ और तथ्य हाथ लगे हैं किसी को भी भ्रष्टाचार के मामले में बख्शा नहीं जाएगा, चाहे कोई कितना ही बड़ा क्यों ना हो। अब देखना है कि क्या एसीबी मास्टर प्लान के इस टेंडर की भी जांच करेगी कि टेंडर में काम की लागत 5 करोड़ रुपए क्यों बढ़ाई गई है।
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