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पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का बाघ संरक्षण के प्रति समर्पण : कार्बेट और सरिस्का जैसे संकटग्रस्त क्षेत्रों पर विशेष ध्यान
khaskhabar.com : शुक्रवार, 27 दिसम्बर 2024 10:51 AM
सैयद हबीब, जयपुर। भारत के जंगलों में बाघों की दहाड़ को सुरक्षित रखने की दिशा में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. डॉ. मनमोहन सिंह ने उल्लेखनीय योगदान दिया। उनके नेतृत्व में पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता को संरक्षित रखने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए गए।
डॉ. सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए बाघों के संरक्षण के लिए भारत सरकार के प्रतिष्ठित कार्यक्रम ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ को नए आयाम दिए। 2005 में, जब भारत में बाघों की संख्या में तेजी से गिरावट देखी गई, तो उन्होंने एक उच्च स्तरीय टास्क फोर्स का गठन किया। इस टास्क फोर्स ने न केवल बाघों के संरक्षण के लिए ठोस रणनीति बनाई, बल्कि देश भर में बाघ अभयारण्यों की निगरानी को भी मजबूत किया।
नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) की स्थापना
2006 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन कर डॉ. सिंह ने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (NTCA) की स्थापना की। इस संस्था ने बाघ संरक्षण के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें बाघों की जनगणना, उनके प्राकृतिक आवास की सुरक्षा और स्थानीय समुदायों की भागीदारी को प्राथमिकता दी गई।
कार्बेट और सरिस्का जैसे संकटग्रस्त क्षेत्रों पर विशेष ध्यान
सरिस्का बाघ अभयारण्य में बाघों की घटती संख्या ने जब अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं, तो डॉ. मनमोहन सिंह ने इसकी गहराई से जांच कराई। उनके निर्देशन में सरिस्का में बाघ पुनर्स्थापन योजना शुरू की गई, जो सफल रही। इसी तरह, जिम कार्बेट जैसे अन्य संरक्षित क्षेत्रों को भी पर्याप्त बजट और संसाधन मुहैया कराए गए।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की आवाज
डॉ. सिंह ने बाघों के संरक्षण को केवल राष्ट्रीय मुद्दा नहीं माना, बल्कि इसे वैश्विक प्राथमिकता बनाने के लिए प्रयास किए। ‘ग्लोबल टाइगर इनिशिएटिव’ में भारत की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर उन्होंने यह संदेश दिया कि बाघ संरक्षण न केवल पर्यावरणीय बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
स्थानीय समुदायों के साथ सहभागिता
डॉ. मनमोहन सिंह ने बाघ संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भूमिका को अहम माना। उनकी नीतियों ने स्थानीय निवासियों को रोजगार और अन्य लाभ प्रदान किए, जिससे वे बाघों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हुए।
परिणामस्वरूप उपलब्धियां
डॉ. मनमोहन सिंह की पहल के कारण 2006 से 2014 के बीच भारत में बाघों की संख्या में सुधार देखने को मिला। बाघों की जनगणना रिपोर्टों के अनुसार, भारत ने दुनिया के 70% से अधिक बाघों को संरक्षित करने में सफलता पाई।
डॉ. मनमोहन सिंह का नेतृत्व यह दर्शाता है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और ठोस नीतियां मिलकर विलुप्ति की कगार पर पहुंचे प्रजातियों को बचा सकती हैं। उनकी दूरदृष्टि और समर्पण ने बाघों के संरक्षण के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ा।
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